Saturday, March 20, 2010

डरता हूँ कहीं मैं पागल ना बन जाउ,

तीखी नज़र और सुनहरे रूप का कायल ना बन जाउ ,
अब बस भी कर ज़ालिम कुछ तो रहम खा मुझ पैर ,
चली जा मेरी नजरो से दूर कहीं मैं शायर ना बन जाउ
जलाते है हम अपने दिल को दिए की तरह
तेरी ज़िन्दगी मैं खुशियों की रौशनी लाने के लिए
सह जाते है हर चुभन को अपने पैरों तले
तेरी राहों मैं फूल भिछाने के लिए ..
मुस्कान तेरे होटों से कभी जाए ना ,

आंसूं तेरे पलकों पे कभी आये ना ,
पूरा हो तेरा हर ख्वाब ,
और जो पूरा ना हो वोह ख्वाब कभी आये ना ...
उनकी जुल्फों के टेल हम ज़माना भुला देते हैं ,

वो एक नज़र से कितने अरमान जगा देते हैं ,
इश्क तो उनको भी है हमसे ये जानते हैं हम ,
फिर भी ना कह कर क्यों वो इस दिल को सजा देते हैं
जान से भी ज्यादा उन्हें प्यार किया करते थे ,

याद उन्हें दिन रात किया करते थे ,
अब उन रहो से गुज़रा नहीं जाता ,
जहा बैठ कर उनका इंतज़ार किया करते थे .!
गम-ए-उल्फत मैं हम हद से गुजर गए ,

की उनके इश्क मैं हम दीवाने बन गए ,
हमने तो सुनाई थी अपनी दासताएँ -ए -दिल उनको ,
वो ज़ालिम समझे ग़ज़ल और वाह वाह कर गए