किसी लुटेरे ने नहीं मुझे तो तेरी सादगी ने लुटलिया
किसी वक़्त ने नहीं मुझे तो तेरे इंतज़ार ने मार्डिया
किसी खंजर ने नहीं मुझे तो तेरे अल्फाज़ो ने ज़ख्मीकिया ,
अरे अब तो गुस्सा छोड़ दे मुझे तेरी ख़ामोशी ने मार दिया
महकती बहारो में तुम्हे फूलों की तरह देखा है , बरसते सावन में तुम्हे बूँदो की तरह देखा है , सजा रखे है जो ख्वाब अपनी ज़िन्दगी की रहो में , उन रहो में तुम्हे अपनी दुल्हन बनते देखा है .
तुम्हारी इस तुम्हारी इस अदा का क्या जवाब दू ,
अपने दोस्त को क्या उपहार दू ,
कोई अच्छा सा फूल होता तो माली से मंगवाता ,
जो खुद गुलाब है उसको क्या गुलाब दू